............ विहान एक लघु पत्रिका है, यह उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद से जनसहयोग से प्रकाशित होती है, पत्रिका पूर्णतः गैर व्यावसायिक है,विहान का अर्थ हिंदी, नेपाली, संस्कृत, बांग्ला भाषा के साथ साथ कुमाउनी और गढ़वाली बोली में "प्रातःकाल का समय होता है, जब सूर्य की लालिमा अँधेरे पर पहला प्रहार करती है..........

Tuesday 13 March 2012

विहान और रचनात्मक शिक्षक मंडल द्वारा आयोजित सृजनोत्सव (केदार-नागार्जुन की जन्मशती) पर पाखी पत्रिका की रिपोर्ट.

केदार-नागार्जुन की जन्मशती

उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ में १८ व १९ जून को दो दिवसीय सृजनोत्सव' का आयोजन हुआ । पिथौरागढ़ में आयोजित साहित्य, संगीत व कला के इस कार्यक्रम में केदारनाथ अग्रवाल तथा नागार्जुन की कविताओं पर चर्चा-परिचर्चा के साथ उनकी कविताओं की रंगमंचीय प्रस्तुति भी हुआ। साथ ही स्थानीय युवा कवियों द्वारा काव्यपाठ और उनकी कविताओं पर आमंत्रिात साहित्यकारों द्वारा टिप्पणी की गई।
रचनात्मक शिक्षक मंडल और विहान पत्रिाका की ओर से रचनात्मकता का माहौल तैयार करने के उद्देश्य से इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में आलोचक डॉ. जीवन सिंह, कथाकार पंकज विष्ट तथा साहित्यकार डॉ. कपिलेश भोज प्रमुख वक्ताओं के रूप में उपस्थित थे। कार्यक्रम छह सत्राों में बंटा था। प्रथम सत्रा में' कविता की जनपक्षधरता और केदार बाबू व बाबा नागार्जुन की कविताई' पर डॉ. जीवन सिंह ने व्याख्यान दिया । इस विषय पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि आम जन के पक्ष में रचा जाने वाला साहित्य ही वास्तविक साहित्य है, जबकि सत्ता और शक्ति संपन्न वर्ग की प्रशंसा में लिखा जाने वाला साहित्य नकली साहित्य है। हिंदी साहित्य में नकली साहित्य बहुत लिखा गया है जो सत्ता की भूख तथा पैसा की प्राप्ति के लिए लिखा गया साहित्य है। डॉ. सिंह ने नागार्जुन का मिथिला और केदार बाबू का बुंदेलखंड की ध्रती से जुड़ाव का उल्लेख करते हुए कहा कि जो कविता अपनी जमीन से नहीं जुड़ी होती है वह पनप नहीं सकती है।
अंत में समयांतर के संपादक पंकज विष्ट ने कॉपफी हाउस की देर रात तक की बहसों और नागार्जुन के साथ बिताए पलों की स्मृतियों को बाँटते हुए कहा कि बंद कमरों में शब्दों की सौदागरी करने वाले साहित्यकारों के दौर में वे आमजन की लड़ाइयों में सक्रिय साहित्यकार थे। कोई भी समकालीन जनांदोलन ऐसा नहीं था जिस पर नागार्जुन की कलम न चली हो। इससे पूर्व इतिहासकार डॉ. रामसिंह ने बाबा के पिथौरागढ़ प्रवास के दौरान उनके द्घर में बिताए पलों को याद करते हुए कहा कि बाबा जितने बड़े रचनाकार थे उतने ही बड़े इंसान भी। इस सत्रा का संचालन युवा साहित्यकार महेश चंद्र पुनेठा ने किया। पहले दिन के दूसरे सत्रा में साहित्य पर सवाल-जवाब हुए। आमंत्रिात तीनों वरिष्ठ साहित्यकारों ने साहित्य पाठकों तथा स्थानीय रचनाकारों के सवालों के जवाब दिए। जैसे हमें साहित्य क्यों पढ़ना चाहिए ? इसके उत्तर में डॉ. कपिलेश भोज ने कहा कि साहित्य हमारी संवेदना का विस्तार करता है। हमें हमारे संसार से बाहर की दुनिया से मिलाता है तथा मुक्ति का मार्ग दिखलाता है। इसलिए साहित्य पढ़ा जाना चाहिए। इस सत्रा का संचालन रचनात्मक शिक्षक मंडल के संयोजक सचिव राजीव जोशी ने किया।
प्रथम दिवस के सायंकालीन सत्रा का मुख्य आकर्षण केदार व नागार्जुन की कविताओं से संबंधित रंगमंचीय प्रस्तुति रही। सर्वप्रथम शिक्षक भुवन चंद्र पांडे, गिरिजा कुमार जोशी व बु(ि देव पांडे द्वारा केदारनाथ अग्रवाल के गीतों-आसमान की ओढ़े चुनरिया, धनी पहने पफसल द्घद्घरिया, धूप धरा पर उतरी आदि पर नृत्य प्रस्तुत किया गया। बाबा नागार्जुन की कविता 'हरिजन गाथा' की इस नाट्य प्रस्तुति को उपस्थित दर्शकों ने खूब सराहा। इस अवसर पर युवा शिक्षक संदीप पांडे ने दुष्यंत कुमार और बल्ली सिंह चीमा की ग़८ालों का गायन किया। इस सत्रा का संचालन युवा कवि अनिल कार्की ने किया।
दूसरे दिन के प्रथम सत्रा में 'समकालीन लेखन व यथार्थ' विषय पर पंकज विष्ट ने कहा कि किसी समय के इतिहास को समझने के लिए उस समय का साहित्य सबसे महत्वपूर्ण होता है। साहित्य का काम अपने समय और समाज को अभिव्यक्त करना है। एक रचनाकार को अपने समय की विडंबनाओं को पकड़ना चाहिए और अभिव्यक्त करना चाहिए। वर्तमान दौर में रोटी, कपड़ा, मकान और जल, जंगल, जमीन जैसे मूलभूत सवालों पर हो रहे संद्घर्षों को उद्द्घाटित नहीं होने दिया जा रहा है। पूंजीवादी साहित्यिक संस्थान और मीडिया आम जन की लड़ाई को ढककर सच को विकृत कर रहे हैं।
दूसरे सत्रा में स्थानीय युवा कवियों द्वारा काव्यपाठ किया गया। इसमें जनपद के विभिन्न अंचलों से आए कवियों ने भाग लिया। काव्यगोष्ठी में राजीव जोशी, राजेश पंत, रोहित जोशी, हेम बहुगुणा, भवानी शंकर कांडपाल, अनिल कार्की, विक्रम नेगी, दिनेश भट्ट तथा नवीन विश्वकर्मा ने अपनी प्रतिनिध्ि कविताएँ सुनाईं। इस सत्रा का संचालन युवा कवि विक्रम नेगी ने किया। अंतिम सत्रा में आमंत्रिात साहित्यकारों ने युवा कवियों की कविताओं की विशिष्टताओं और सीमाओं की ओर उनका ध्यान खींचते हुए कहा कि इन कवियों में उन्हें जनपदीय चेतना एवं जनपक्षध्रता दिखाई देती हैं जो भविष्य के प्रति आशान्वित करती हैं। कार्यक्रम के अंत में रचनात्मक शिक्षक मंडल के जिला संयोजक युवा साहित्यकार दिनेश भट्ट ने सभी का आभार व्यक्त किया।

Monday 6 February 2012

मार्च-जुलाई 2010 (संयुक्तांक)













सृजनोत्सव २०१० : आयोजक- विहान + रचनात्मक शिक्षक मंडल

‘सृजनोत्सव 2010’: कुछ झलकियां

लेखक : रोहित जोशी (http://naisoch.blogspot.com/2010/07/2010.html ब्लॉग से)

उत्तराण्ड के सुदूर जनपद पिथौरागढ़ में बाबा नागार्जुन और केदारनाथ अग्रवाल की जन्मशती के अवसर पर विगत् 18 और 19 जून को ‘रचनात्मक शिक्षक मंडल’ और लघु कविता पत्रिका ‘विहान’ की ओर से ‘सृजनोत्सव 2010’ मनाया गया। इस दो दिवसीय कार्यक्रम में साहित्यिक व्याख्यान, चर्चाऐं, काव्य पाठ, गजल संध्या, पोस्टर प्रदर्शनी और नाटक की प्रस्तुति की गई। पहले दिन के प्रथम सत्र में अल्वर राजस्थान से आऐ हिन्दी कविता के प्रसिद्ध समालोचक डा0 जीवन सिंह ने ‘कविता की जनपक्षधरता और बाबा नागार्जुन और केदार बाबू की कविताई’ विषय पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि सत्ता की भूख या व्यक्तिगत् अहमन्यता के लिए लिखा गया साहित्य नकली साहित्य है। इसमें मानव और जीवन का ऊपरी चित्रण होता है और यह जीवन की गहराई को नहीं छू पाता है। रचनाकार अपने स्थानीय अनुभवों, देश काल, को अपनी दृष्टि से वैश्विक बना सकता है। जनपक्षधरता शब्द साहित्य में 1936 के बाद समाजवादी आन्दोलनों से आया। लेकिन जनपक्षधरता और प्रतिबद्धता का सवाल राजनीतिक होने से पहले मानवीयता का सवाल है। साहित्य में यह नऐ सौन्दर्यबोध के रूप में भी आया है। कविता में लोकप्रियता और जनपक्षधरता का एक साथ समावेश नागार्जुन और केदारनाथ दोनों के पास ही मिलता है। नागार्जुन की कविताओं में वह इतिहास मिलता है जो जनपक्षधर है। नागार्जुन ने सत्ताधीशों व सत्ता की परिधि में घूमने वालों पर सीधा व्यंग्य किया है। नागार्जुन और केदार बाबू की कविताओं ने वर्तमान की सार्थक आलोचना की है। इनकी कविताओं में वह अन्र्तदृष्टि मौजूद है जो कविता को दीर्घकालिक और सार्वभौमिक बनाती है। वहीं दूसरी ओर एक नई विश्वदृष्टि के अभाव में ही ‘अज्ञेय’ की कविता रहस्यवाद में फंस कर रह जाती है। व्याख्यान के बाद वरिष्ठ इतिहासकार डा0 राम सिंह और कथाकार पंकज बिष्ट ने नागार्जुन के साथ के अपने अनुभवों को श्रोताओं से सांझा किया। इस प्रथम सत्र के बाद श्रोताओं ने साहित्य से सम्बन्धित अपने प्रश्नों पर कथाकार पंकज बिष्ट, डा0 जीवन सिंह और डा0 कपिलेश भोज, से विस्तृत चर्चा की। इस सत्र का संचालन महेश पुनेठा ने किया। इसके बाद के सत्र में कला दर्शन मंच ‘कदम’ के कलाकारों ने विक्रम नेगी के निर्देशन में नागार्जुन की कविता ‘हरिजन गाथा’ पर आधारित नाटक प्रदर्शित किया। शाम के समय में संदीप पाण्डे द्वारा दुष्यन्त और बल्ली सिंह चीमा की ग़जलों के गायन का लोगों ने लुत्फ़ उठाया साथ ही उच्च माध्यमिक विद्यालय तिलढुकरी के विद्यार्थियों ने केदारनाथ अग्रवाल के गीतों पर आधारित रंगमंचीय प्रस्तुति दी।

‘सृजनोत्सव’ के दूसरे दिन ‘समकालीन लेखन एवं यथार्थ’ विषय पर समयांतर के संपादक व वरिष्ठ कथाकार ‘पंकज बिष्ट’ मुख्य व्याख्याकार थे। उन्होंने विषय पर बोलते हुए कहा कि-किसी समय के इतिहास को समझने के लिए उस समय का साहित्य सबसे महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने समकालीन लेखन की महत्वपूर्ण रचनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि हिन्दी साहित्य महत्वपूर्ण रचनाओं से अछूता नहीं है। यशपाल की झूठा सच, भीष्म साहनी के तमस और ओम प्रकाश वाल्मिकी के जूठन, राही मासूम रजा का आधा गांव आदि रचनाओं पर चर्चा करते हुए उन्होंने वावजूद इन रचनाओं के हिन्दी साहित्य में उपेक्षित रही ‘भारत विभाजन’ की त्रासदी पर विस्तार से बात रखी। उन्होने श्री लाल शुक्ल की ‘राग दरवारी’ को नगरीय संस्कृति के कारण भ्रष्ट होते समाज का महत्वपूर्ण चित्रण बताया। उत्तराखण्ड के परिवेश पर बात रखते हुए उन्होंने कहा कि- उत्तराखण्ड में पीढ़ियों से सेना में भर्ती हो सहादत की एक लम्बी परम्परा अब नीयति की तरह बन गई है। यह त्रासदपूर्ण है। लेकिन इस पर उत्तराखण्ड से कोई रचना सामने नहीं आ रही है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड के नऐ रचानाकारों को इस पर काम करने की जरूरत है। पंकज बिष्ट के व्याख्यान के बाद कवि डा0 कपिलेश भोज ने लेखन के समकालीन परिदृश्य पर बोलते हुए कहा कि- प्रतीयमान यथार्थ के बजाय रचनाकार को वास्तविक यथार्थ को पकड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि बड़े सपने के बिना कोई बड़ा रचनाकार नहीं हो सकता है। इस सत्र का संचालन अनिल कार्की द्वारा किया गया।

दूसरे दिन के दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें राजेश पन्त, राजीव जोशी, नवीन विश्वकर्मा, हेम बहुगुणा, दिनेश भट्ट, भवानी शंकर काण्डपाल, अनिल कार्की, विक्रम नेगी, आदि ने अपनी कविताओं का पाठ किया। काव्यपाठ के बाद कविता के समालोचक डा0 जीवन सिंह, व कवि कपिलेश भोज ने कविताओं की विस्तार से समीक्षा करते हुए इनमें कई कवियों को बड़ी सम्भावनाओं का कवि बताया। पूरे कार्यक्रम में सतीश जोशी के कविता पोस्टर आकर्षण का केन्द्र बने रहे। कार्यक्रम के समापन पर आयोजकों की ओर से दिनेश भट्ट ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार बद्रीदत्त कसनियाल, गोविन्द कफलिया, जगत मर्तोलिया, आशुतोश पाण्डेय, कंचन जोशी, रूपेश डिमरी, दीपा पाटनी, विनोद बसेड़ा, कमल किशोर, भुवन चन्द्र पाण्डे, गिरिजा जोशी, बुद्धिदेव पाण्डे, चन्दन डसीला, किशोर पाटनी, महिमन दिगारी, अभिषेक पुनेठा, लता जोशी, आदि जनपद के साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।  

  
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सृजनोत्सव २०१० : आयोजक- विहान + रचनात्मक शिक्षक मंडल

मनुष्य के पक्ष में खड़ा होना ही जनपक्षधरता है

प्रस्तुति : राजीव जोशी
साहित्य, संगीत, कला जैसे विविध क्षेत्रों में रचनात्मकता का माहौल तैयार करने और जनपक्षीय साहित्य की समझ पैदा करने के उद्देश्य से 18 व 19 जून को पिथौरागढ़ के नगरपालिका सभागार में ‘रचनात्मक शिक्षक मण्डल’ व ‘विहान’ परिवार की ओर से ‘सृजनोत्सव 2010’ का आयोजन किया गया। आयोजन के मुख्य वक्ता मशहूर समालोचक डॉ. जीवन सिंह, ‘समयान्तर’ के संपादक पंकज बिष्ट व साहित्यकार डॉ. कपिलेश भोज थे। बाबा नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल व अज्ञेय की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य पर आयोजित इस कार्यक्रम के प्रथम सत्र में डॉ. जीवन सिंह ने ‘कविता की जनपक्षधरता व बाबा नागार्जुन व केदार बाबू की कवितायें’ विषय पर बोलते हुए कहा कि आम जन के पक्ष के विषयों में रचा जाने वाला साहित्य ही वास्तविक साहित्य है, जबकि सत्ता और शक्तिसम्पन्न वर्ग की प्रशंसा के लिये रचा गया साहित्य नकली साहित्य है। उन्होंने मात्र लोकप्रियता के लिये लिखने वाले रचनाकारों को चुनौती देते हुए कहा कि व्यंग करना है तो बाबा नागार्जुन की तरह ताकतवर पर करो। इमरजेन्सी काल में चौपालों में गायी बाबा की कविताओं व केदार बाबू की कविताओं का उदाहरण दे-देकर उन्होंने कहा कि मनुष्यता के पक्ष में खड़ा होना ही जनपक्षधरता है। उन्होंने अज्ञेय को कुशल शब्द शिल्पी बताया। पंकज बिष्ट ने कॉफी हाउस की देर रात तक की बहसों और नागार्जुन के साक्षात्कार के दौरान बिताये पलों की स्मृतियाँ बाँटते हुए कहा कि बन्द कमरों में शब्दों की सौदागरी करने वाले साहित्यकारों के दौर में वे आमजन की लड़ाइयों में सक्रिय साहित्यकार थे। कोई भी समकालीन जनान्दोलन ऐसा नहीं था जिस पर नागार्जुन की कलम न चली हो। डॉ. राम सिंह ने बाबा के पिथौरागढ़ प्रवास के दौरान उनके घर में बिताये पलों को याद किया और शिक्षकों द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम को अपने तरह का पहला प्रयोग बताते हुए शुभकामनायें दी। सत्र का संचालन महेश पुनेठा ने किया।
दूसरे सत्र में अतिथियों से सवाल-जवाब के क्रम में डॉ. कपिलेश भोज ने कहा कि साहित्य इसलिये पढ़ना चाहिये, क्योंकि यह हमारी संवेदना का विस्तार करता है। साहित्यविहीन व्यक्ति अपनी छोटी दुनिया में कैद होकर कुंठित हो जाता है। साहित्य मुक्ति का मार्ग बताता है और समाज को सरोकारों से जोड़ता है। पंकज बिष्ट ने एक कहावत का जिक्र करते हुए कहा कि ‘साहित्य में तिथियों के अलावा सब सच होता है जबकि इतिहास में तिथियों के अलावा कुछ भी सच नहीं होता।’ उन्होंने कहा कि वाल्मीकी या प्रेमचन्द के साहित्य से तत्कालीन सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक परिवेश के दृश्य स्वतः ही प्रकट हो जाते हैं। साहित्य संवेदना का विस्तार करता है। लोकभाषा का किसी रचनाकार के लिये क्या महत्व है ? डॉ. जीवन सिंह का जवाब था कि अपने लोक से कटकर कोई कवि जनपक्षीय नहीं हो सकता, किन्तु मात्र लोक-भाषा के प्रयोग से भी कोई रचना जनपक्षीय नहीं हो सकती। उन्होंने तुलसी मीरा के साहित्य का उदाहरण देकर कहा कि लोकभाषा में रचे जाने के बावजूद इनके साहित्य की मूल ताकत भक्ति-भावना थी।
सायंकालीन सत्र में राजकीय प्रा. वि. तिलढुंगरी के छात्रों द्वारा केदारबाबू की कविता ‘आसमान की ओड़े चुनरिया, धानी पहने फसल घघरिया’ कविता पर नृत्य प्रस्तुत किया गया, जिसे भुवन पाण्डे, गिरिजा जोशी व बुद्धिबल्लभ पाण्डे ने संगीतबद्ध किया। ‘कदम’ के बाल कलाकारों की विक्रम नेगी द्वारा निर्देशित बाबा नागार्जुन की कविता ‘हरिजन गाथा’ की मंचीय नाट्य प्रस्तुति ने दर्शकों को प्रभावित किया। संदीप पाण्डे व भुवन पाण्डे ने बल्ली सिंह चीमा व दुष्यन्त कुमार की गजलों को प्रस्तुत कर समाँ बाँध दिया। युवा शिक्षक सतीश जोशी के कविता पोस्टरों से पटी पड़ी नगरपालिका हॉल की दीवार पर हर वक्त दर्शकों की भीड़ दिखी।
दूसरे दिन ‘समकालीन लेखन व यथार्थ’ विषय पर बोलते हुए पंकज बिष्ट ने कहा कि वर्तमान दौर में रोटी, कपड़ा, मकान, जल-जंगल-जमीन जैसे मूलभूत सवालों पर हो रहे संघर्षों को उद्घाटित नहीं होने दिया जा रहा है। पूँजीवादी साहित्यिक संस्थान व मीडिया आम जन की लड़ाई को ढँक कर सच को विकृत कर रहे हैं। डॉ. कपिलेश भोज ने कहा कि आज आभासी यथार्थ से बचते हुए परत दर परत यथार्थ को उघाड़ने की जरूरत है। वास्तविक मुद्दे पीछे छूट रहे हैं जो वास्तविक लेखन है उसे हतोत्साहित कर सामने नहीं आने दिया जा रहा है। इसी शाम उदीयमान कवियों के लिये काव्य पाठ का भी आयोजन किया गया। इसमें नाचनी से राजीव जोशी, मुनस्यारी से राजेश पन्त, गंगोलीहाट से रोहित जोशी, अल्मोड़ा के हेम बहुगुणा, पिथौरागढ़ के भवानी शंकर, अमिल कार्की, विक्रम नेगी, दिनेश भट्ट व गुमनाम विश्वकर्मा ने अपनी कविताएँ प्रस्तुत की। बाहर से आये अतिथियों ने माना कि इन युवा कवियों में जनपक्षीय चेतना और भविष्य के लिये संभावनायें दिखाई देती हैं। कार्यक्रम के अंत में मंडल के जिला संयोजक दिनेश भट्ट ने सबको धन्यवाद दिया। 
http://www.nainitalsamachar.in/srijanotsav-2010-at-pithoragarh/
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